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गणेश चतुर्थी के उपलक्ष्य में

Painting by Veena Chandavarkar

आज गणेश चतुर्थी का पावन दिवस है। शिवपुत्र गणेश को अनंत काल से सनातन धर्म में प्रथमेश याने पहली पूजा के अधिकारी के रूप में पूजा गया है। सभी विद्याओं के इष्टदेवता गजानन सभी विद्यार्थियों के परमदैवत रहें हैं।

आज उठते ही मैंने अपने आपसे संकल्प किया कि आज इस देवता का बहुत ही सुंदर स्तोत्र है, जिसे हम “गणपति अथर्वशीर्ष” के नामसे जानते हैं, जो अथर्ववेद में पढ़ा जा सकता है, और जिसे मुझे संघ की दयानंद शाखा में रहते हुए बचपन में पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, उसका सरल भाषा में रूपांतर करूँ।

भाषासु मुख्या मधुरा दिव्या गीर्वाणभारती। तत्रापि काव्यं मधुरं तस्मादपि सुभाषितम्॥

लेकिन आज यही देवों की भाषा जनसामान्यों से थोड़ी दूर चली गई है। मेरी असीम इच्छा है कि इस मधुरवाणी को अपना पुरातन महत्व पुनः प्राप्त हो। इसी दिशा में यह और एक छोटासा प्रयास- आप सभीसे प्रार्थना है कि आप मेरे इस प्रयासमें मुझे जरूर प्रोत्साहित करेंगे।

सर्वप्रथम प्रथमेश गणेशजी की वंदना!

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

हे गणेश जी! आप महाकाय हैं। आपकी सूंड वक्र है। आपके शरीर से करोडों सूर्यों का तेज निकलता है। आपसे प्रार्थना है कि आप मेरे सारे कार्य निर्विघ्न पूरे करें।

श्री गणपति अथर्वशीर्ष अत्यंत सुंदर, श्रवणीय और गेय स्तोत्र है। संस्कृत श्लोकों की रचना में एक स्वाभाविक लय और ताल रहता ही है। इसमें भी आपको वह दिखाई देगा!

।।श्री गणेशाय नम:।।
ॐ भद्रं कर्णेभि शृणुयाम देवा:।
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्रा:।।

स्थिरै रंगै स्तुष्टुवांसस्तनुभि:।।
व्यशेम देवहितं यदायु:।।१।।


ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा:।
स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्र्यो अरिष्ट नेमि:।।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।।२।।

ॐ शांति:। शांति:।। शांति:।।।

ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि।।
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि।
त्वमेव केवलं धर्तासि।।
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।।
त्वं साक्षादात्माsसि नित्यम्।
ऋतं वच्मि।। सत्यं वच्मि।।
अव त्वं मां।। अव वक्तारं।।
अव श्रोतारं। अवदातारं।।
अव धातारम अवानूचानमवशिष्यं।।
अव पश्चात्तात्।। अवं पुरस्त्तात्।।
अवोत्तरात्तात्।। अव दक्षिणात्तात्।।
अव चोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।।
सर्वतो मां पाहिपाहि समंतात्।।३।।

त्वं वाङग्मयचस्त्वं चिन्मय:।
त्वं आनंदास्त्वं ब्रह्ममय:।।
त्वं सच्चिदानंदाS द्वितियोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।४।।

सर्व जगदि‍दं त्वत्तो जायते।
सर्व जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्व जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।।
सर्व जगदिदं त्वयि प्रत्येति।।
त्वं भूमिरापोनलोऽनिलो नभ:।।
त्वं चत्वारिवाक्पदानी।।५।।

त्वं गुणयत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत: त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधार स्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यम्।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वं इन्द्रस्त्वं अग्निस्त्वं।
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव: स्वरोम्।।६।।

गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।।
अनुस्वार: परतर:।। अर्धेन्दुलसितं।।
तारेण ऋद्धं।। एतत्तव मनुस्वरूपं।।
गकार: पूर्व रूपं अकारो मध्यमरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्य रूपं।। बिन्दुरूत्तर रूपं।।
नाद: संधानं।। संहिता संधि: सैषा गणेश विद्या।।
गणक ऋषि: निचृद्रगायत्रीछंद:।। ग‍णपति देवता।।
ॐ गं गणपतये नम:।।७।।

एकदंताय विद्महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नोदंती: प्रचोदयात।।
एकदंतं चतुर्हस्तं पारमंकुशधारिणम्।।
रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्।।
रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।।
रक्त गंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपूजितम्।।८।।

भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणम्च्युतम्।।
आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृतै: पुरुषात्परम।।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनांवर:।। ९।।

नमो व्रातपतये नमो गणपतये।। नम: प्रमथपतये।।
नमस्तेऽस्तु लंबोदारायैकदंताय विघ्ननाशिने शिवसुताय।।
श्री वरदमूर्तये नमोनम:।।१०।।

एतदथर्वशीर्ष योऽधीते।। स: ब्रह्मभूयाय कल्पते।।
स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते।स सर्वत: सुख मेधते । स पंचम: पापाद्प्रमुच्यते।। ११।।

सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।।
सायं प्रात: प्रयुंजानो अपापोद्‍भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।।
धर्मार्थ काममोक्षं च विंदती।।१२।।

इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम।।
यो यदि मोहाददास्यति स पापीयान भवति।।
सहस्त्रावर्तनाद्यं यं काममधीते तंतमनेन साधयेत।।१३ ।।

अनेन गणपतिमभिषिं‍चति स वाग्मी भ‍वति।।
चतुर्थ्यांमनश्चन्न जपति स विद्यावान् भवति।।
इत्यर्थर्वण वाक्यं।। ब्रह्माद्यारवरणं विद्यात् न विभेती कदाचनेति।।१४।।

यो दूर्वां कुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति।।
यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति।। स:मेधावान भवति।।
यो मोदक सहस्त्रैण यजति।
स वांञ्छित फलमवाप्नोति।।
य: साज्य समिभ्दर्भयजति, स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।१५।।

अष्टौ  ब्राह्मणानां सम्यग्राहयित्वा सूर्यवर्चस्वी भवति।।
सूर्य गृहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ वा जपत्वा सिद्ध मंत्रोन् भवति।।
महाविघ्नात्प्रमुच्यते।। महापापात् प्रमुच्यते।महादोषात्प्रमुच्यते।।
स सर्व विद्भवति स सर्वविद्भवति। य एवं वेद इत्युपनिषद।।१६।।

ॐ शांति:। शांति:।। शांति:।।।

।। अर्थर्ववैदिय गणपत्युपनिषदं समाप्त:। ।

स्वयं गानसरस्वती लता मंगेशकरजी ने इसे अपने स्वर में पठण किया है। बहुत ही सुंदर आवाजमें इस पवित्र स्तोत्र को सुनने की अनुभूति कुछ और ही है। जरूर श्रवण करें और इस आनन्द को अर्जित करें। https://youtu.be/WnZjRCPGDHs?si=3H1NMmBfOquKj4lR

इस स्तोत्र का सरल भाषा में अर्थ बताने की कोशिश मैं (मेरी सीमित सोच की आधार पर) कर रहा हूँ। आपको उसमें त्रुटि दिखाई दे तो जरूर दर्शा दें। मुझे आप जैसे ज्ञानी लोगों से शिक्षा पाकर खुशी होगी। मुझसे कोई गलती हुई हो तो आप उदार होकर मुझे क्षमा करें। इसी क्षमायाचना के साथ ही प्रारंभ करता हूँ।

।।श्री गणेशाय नम:।।
ॐ भद्रं कर्णेभि शृणुयाम देवा:।
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्रा:।।

स्थिरै रंगै स्तुष्टुवांसस्तनुभि:।।
व्यशेम देवहितं यदायु:।।१।।

अर्थात: ॐ, हे देव! जो कानों के लिए शुभ है वही सुनो, जो यज्ञ अनुष्ठानों के योग्य हैं, वहीं हम अपने आँखों से मंगलमय होते देखें। रोगमुक्त शरीर और स्वस्थ देह से आपकी स्तुति करते हुए जो प्रजापति ब्रह्म ने हमारी आयु तय की है, उसे पूरा करें।


ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा:।
स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्र्यो अरिष्ट नेमि:।।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।।२।। ॐ शांति:। शांति:।। शांति:।।।

अर्थात : ऐश्वर्यशाली इंद्रदेव हमारा कल्याण करें, विश्ववेद और संसार के सभी पदार्थों में जो स्मरण है, वे पूषा (सूर्यदेव) हमारा कल्याण करें। जिनकी चक्रधारा की समान गति को कोई रोक नहीं सकता, ऐसे गरुड़देव हमारा कल्याण करें। वेदों के स्वामी बृहस्पति हमारा कल्याण करें। ॐ शांति:। शांति:।। शांति:।।।

ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि।।
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि।
त्वमेव केवलं धर्तासि।।
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।।
त्वं साक्षादात्माsसि नित्यम्।

अर्थात :- हे गणेश! आप को प्रणाम। 
आप ही प्रत्यक्ष तत्त्व हो।
आप ही केवल कर्ता हो। 
आप ही केवल धर्ता हो।
आप ही केवल हर्ता (दुख हरण करनेवाले) हो। 
निश्चयपूर्वक आप ही इन सब रूपों में विराजमान ब्रह्म हो। 
आप साक्षात नित्य आत्मस्वरूप हो।


ऋतं वच्मि।। सत्यं वच्मि।।

अर्थात : मैं ऋत (न्यायसंगत बात) कहता हूँ, 
सत्य कहता हूँ।


अव त्वं मां।। अव वक्तारं।।
अव श्रोतारं। अवदातारं।।
अव धातारम अवानूचानमवशिष्यं।।
अव पश्चात्तात्।। अवं पुरस्त्तात्।।
अवोत्तरात्तात्।। अव दक्षिणात्तात्।।
अव चोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।।
सर्वतो मां पाहिपाहि समंतात्।।३।।

अर्थात : आप मेरी रक्षा करो, आप वक्ता (बोलने वाले) की रक्षा करो, आप श्रोता (सुनने वाले) की रक्षा करो, आप दाता की रक्षा करो, आप धाता की रक्षा करो, आप आचार्य की रक्षा करो, शिष्य की रक्षा करो। आप आगे से रक्षा करो, पीछे से रक्षा करो, पूर्व से रक्षा करो, पश्चिम से रक्षा करो, उत्तर दिशा से रक्षा करो, दक्षिण से रक्षा करो। आप ऊपर से रक्षा करो, नीचे से रक्षा करो। आप सब ओर से मेरी रक्षा करो।

त्वं वाङग्मयस्त्वं चिन्मय:।
त्वं आनंदास्त्वं ब्रह्ममय:।।
त्वं सच्चिदानंदाS द्वितियोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।४।।

अर्थात:- आप वाङ्मय हो, आप चिन्मय हो, आप आनंदमय हो, आप ब्रह्ममय हो, आप सच्चिदानन्द और अद्वितीय (जिसके आलावा कोई दूसरा नहीं) हो। आप ज्ञानमय हो, विज्ञानमय हो। आप प्रत्यक्ष कर्ता हो आप ही ब्रह्म हो।

सर्व जगदि‍दं त्वत्तो जायते।
सर्व जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्व जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।।
सर्व जगदिदं त्वयि प्रत्येति।।
त्वं भूमिरापोनलोऽनिलो नभ:।।
त्वं चत्वारिवाक्पदानी।।५।।

अर्थात :- सारा जगत आप ही से उत्पन्न होता है, सारा जगत आप से सुरक्षित रहता है, सारा जगत आप में लीन रहता है, सारा जगत आप ही में प्रतीत होता है । आप ही भूमि, जल, आकाश और अग्नि हो। आप चार प्रकार की वाणी हो (परा, पश्यन्ती, मध्यमा, वैखरी)

त्वं गुणयत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत: त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधार स्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यम्।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वं इन्द्रस्त्वं अग्निस्त्वं।
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव: स्वरोम्।।६।।

अर्थात :- आप तीनों गुणों (सत्त्व, राज, तम) से परे हो। आप तीनों अवस्थाओं (जागृत, स्वप्ना, सुषुप्ति) से परे हो। आप तीनों देह (स्थूल, सूक्ष्म और कारण) से परे हो। आप तीनों काल (भूत, वर्तमान, भविष्य) हो। आप मूलाधार चक्र में स्थित हो। तीनों शक्तियों (संकल्प शक्ति, उत्साह शक्ति और ज्ञान शक्ति) में आप ही हो। सभी योगी नित्य तुम्हारा ध्यान करते हैं। आप ब्रह्मा, विष्णु, और रूद्र हो। आप इंद्र हो, आप अग्नि हो, आप वायु हो, आप सूर्या हो, आपही चंद्र हो। आप ही ब्रह्म और आप ही त्रिपाद भू, भुवः और स्वः हो।

गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।।
अनुस्वार: परतर:।। अर्धेन्दुलसितं।।
तारेण ऋद्धं।। एतत्तव मनुस्वरूपं।।
गकार: पूर्व रूपं अकारो मध्यमरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्य रूपं।। बिन्दुरूत्तर रूपं।।
नाद: संधानं।। संहिता संधि: । सैषा गणेश विद्या।।
गणक ऋषि: निचृद्रगायत्रीछंद:।। ग‍णपति देवता।।
ॐ गं गणपतये नम:।।७।।

अर्थात :- ‘गण’ के प्रथम शब्दांश (ग) का उच्चारण करने के बाद प्रथम वर्ण (अ) का उच्चारण करें, उसके बाद अनुस्वार (म्) का उच्चारण करें (जिससे ‘गम्’ बनता है), इसके बाद इसे अधचन्द्र से सुशोभित करें (गँ) और तार से इसे बाधाएँ (इस प्रकार “ॐ गँ” बनता है)। ग-कार प्रथम रूप है, अ-कार मध्य रूप है और अनुस्वार अंतिम रूप है। बिंदु उत्तर (ऊपरी) रूप है । अंत में नाद का संधान (योग) होता है, ये सभी आपस में मिल जाते हैं (“ॐ गँ” ये रूप बनता है )। यह गणेश विद्या है, गणक इसके ऋषि हैं, निचृद-गायत्री छन्द है, गणपति देवता है, ॐ गँ गणपतये नमः।

एकदंताय विद्महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नोदंती: प्रचोदयात।।

अर्थात :- हम एकदन्त को जानते हैं; वक्रतुण्ड का ध्यान करते हैं। वह दन्ती (हाथीदाँत वाला) हमें जागृत करे।


एकदंतं चतुर्हस्तं पारमंकुशधारिणम्।।
रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्।।
रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।।
रक्त गंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपूजितम्।।८।।

भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणम्च्युतम्।।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृतै: पुरुषात्परम।।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनांवर:।। ९।।

अर्थात :-  भगवान गणेश एकदन्त चार भुजाओं वाले है जिसमे वह पाश, अंकुश, दन्त, वर मुद्रा रखते हैं। उनके ध्वज पर मूषक हैं। वे लाल रंग से तेजस्वी हैं, लम्बोदर हैं, हैं लाल वस्त्र धारी हैं। रक्त चन्दन का लेप लगा है। वे लाल पुष्प धारण करते हैं। भक्तो के लिये अनुकम्पा रखते हैं जगत में सभी जगह व्याप्त हैं। श्रृष्टि के रचियता हैं। वह प्रकृति और पुरुष से भी पहले आविर्भूत हुए हैं और अच्युत हैं। जो इनका ध्यान सच्चे हृदय से करते हैं वे महा योगी हैं।

नमो व्रातपतये नमो गणपतये।। नम: प्रमथपतये।।
नमस्तेऽस्तु लंबोदारायैकदंताय विघ्ननाशिने शिव सुताय।।
श्री वरदमूर्तये नमोनम:।।१०।।

अर्थात :– व्रातपति, गणपति को प्रणाम, प्रथम पति को प्रणाम, एकदंत को प्रणाम, विध्नविनाशक, लम्बोदर, शिवतनय श्री वरद मूर्ती को प्रणाम।

एतदथर्वशीर्ष योऽधीते।। स: ब्रह्मभूयाय कल्पते।।
स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते।स सर्वत: सुख मेधते । स पंचम: पापाद्प्रमुच्यते।। ११।।

अर्थात: जो इस अथर्वशीष का पाठ करता है वह विघ्नों से दूर होता है| वह सदैव ही सुखी हो जाता हैं वह पंच महापापों से दूर हो जाता है|

सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।।
सायं प्रात: प्रयुंजानो अपापोद्‍भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।।
धर्मार्थ काममोक्षं च विंदती।।१२।।

अर्थात: सन्ध्या में पाठ करने से दिन के दोष दूर होते है| प्रातः पाठ करने से रात्रि के दोष दूर होते है|हमेशा पाठ करने वाला दोष रहित हो जाता है और साथ ही धर्म, अर्थ, काम एवम मोक्ष पर विजयी बनता है|

इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम।।
यो यदि मोहाददास्यति स पापीयान भवति।।
सहस्त्रावर्तनाद्यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत।।। ।।१३ ।।

अर्थात :-  इस अथर्वशीर्ष को अयोग्य पुरुष को नहीं देना चाहिए। यदि कोई साधक मोहवश किसी अयोग्य व्यक्ति को यह मंत्र देता है, तो वह पापी बन जाएगा।  इसका १ हजार बार पाठ करने से उपासक सिद्धि प्राप्त कर योगि बनेगा |

अनेन गणपतिमभिषिं‍चति स वाग्मी भ‍वति।।
चतुर्थ्यांमनश्रन्न जपति स विद्यावान् भवति।।
इत्यर्थर्वण वाक्यं।। ब्रह्माद्यारवरणं विद्यात् न विभेती
कदाचनेति।।१४।।

अर्थात :- जो इस मन्त्र के उच्चारण के साथ गणेशजी का अभिषेक करता है उसकी वाणी उसकी दास हो जाती है, वह प्रखर वक्तृत्व का स्वामी बन जाता है| जो चतुर्थी के दिन उपवास कर जप करता है वह विद्वान बनता है, यह अथर्व ऋषि का कहना है| जो ब्रह्मविद्या को प्राप्त कर लेता है और वह भय मुक्त होता है |

यो दूर्वां कुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति।।
यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति।। स:मेधावान भवति।।
यो मोदक सहस्त्रैण यजति।
स वांञ्छित फलमवाप्नोति।।
य: साज्य समिभ्दर्भयजति, स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।१५।।

अर्थात :-  जो दूर्वांकुरों के द्वारा गणपतिपूजन करता है वह कुबेर के समान समृद्ध बन जाता है, जो लाजा के द्वारा पूजन करता है, वह यशस्वी बनता है, मेधावी बनता है, जो सहस्र मोदकों के साथ पूजन करता है वह इच्छानुसार फल प्राप्त करता है| जो घी और समिधा के द्वारा हवन करता हैं वह सब कुछ प्राप्त करता है|

अष्टौ  ब्राह्मणानां सम्यग्राहयित्वा सूर्यवर्चस्वी भवति।।
सूर्य गृहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ वा जपत्वा सिद्ध मंत्रोन् भवति।।
महाविघ्नात्प्रमुच्यते।। महापापात् प्रमुच्यते।महादोषात्प्रमुच्यते।।
स सर्व विद्भवति स सर्वविद्भवति। य एवं वेद इत्युपनिषद।।१६।।

ॐ शांति:। शांति:।। शांति:।।।

अर्थात :- जो आठ ब्राह्मणों को उपनिषद का ज्ञाता बनाता है वह सूर्य के सामान तेजस्वी हो जाता है| सूर्य ग्रहण के समय नदी तट पर अथवा अपने इष्ट के समीप इस उपनिषद का पाठ करे तो उसे मंत्र सिद्धी प्राप्त होती है | जिससे जीवन के सारे विघ्नों से मुक्ति प्राप्त होती है, वह पापों के गर्त से ऊपर उठ जाता है। सारे दोषों से मुक्ति प्राप्त होती है। वह सर्व विद्याओं का ज्ञान प्राप्त कर महाविद्वान हो जाता है। यह वेद का कथन है, इस प्रकार का यह उपनिषद है|ॐ शांति:। शांति:।। शांति:।।।

।। अथर्ववैदिय गणपत्युनिषदं समाप्त:। ।

इस प्रकार से अथर्ववेद के गणपति उपनिषद समाप्त हुआ।

आप सभी को गणेश जी की असीम भक्ति का लाभ मिले.

Painting of Ganesh by Veena Chandavarkar

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आठवणी उज्जयिनीच्या आणि काळभैरवाच्या…

माझे बाबा भारतीय वायुदलात १९४९ मध्ये रुजू झाले तेव्हा त्यांच्या अगदी जवळचे काही मित्र होते: राजा करमरकर, राम करंदीकर, आणि बाबांचे खास मित्र, रघुनाथ कर्वे म्हणजे आमचे लाडके कर्वेकाका– काळाच्या ओघात सर्व श्रीशंकराच्या चरणी लीन झाले, कालाय तस्मै नमः!

पुढे लग्न करून कर्वेकाका जेंव्हा अंबाल्याला त्यांच्या पत्नीला घेऊन आले तेव्हा काही दिवस ते आणि आई बाबा एका घरात एकत्र राहिले होते. त्यात प्रभामावशीचे नाते माझ्या मोठ्या मावशीच्या वाड्यातील मेजर फाटकांशी निघाले- ते तिचे मामा. त्यामुळे आईला एक आणखी जवळचे नाते मिळाले. त्या काळात प्रभामावशीचे पहिले बाळंतपण पण आईने केले- तिला जुळ्या मुली होत्या आणि काका मराठी चित्रपटांचे खूप मोठे चाहते होते. त्यामुळे मुलींची नावे त्यांनी त्या काळच्या त्यांच्या पिढीच्या आवडत्या चित्रा आणि रेखा या प्रसिद्ध नट्यांच्या नावांवरच  सुचित्रा आणि सुरेखा अशी ठेवली, पण सर्वच जण त्यांना चित्रा – रेखा असेच ओळखत. १९८५ साली आम्ही त्यांच्याकडे उज्जैनला गेलो होतो. तेव्हा काका आम्हाला काळभैरव मंदिर पाहण्यासाठी घेऊन गेले होते. आज कर्वेकाकांची आठवण आली म्हणून हा प्रपंच.

काळभैरव म्हणजे आदीयोगी श्री शंकराचे एक रौद्र रूप, उज्जैन आणि काशी मध्ये याची मोठी मंदिरे आहेत. काशीला गेलेले असताना आदी शंकराचार्य यांनी एक सुंदर स्तोत्र काळभैरवाला उद्देशून लिहिले आहे.

कालभैरवाष्टकम् असे त्याचे नाव आहे. नाव जरी कालभैरवाष्टकम्  असे असले तरी हा नऊ श्लोकांचा  एक समूह आहे. यातील आठ श्लोकांमध्ये काळभैरवाच्या गुणांचे वर्णन आणि आहे. नववा श्लोक फलश्रुती आहे, म्हणजे याचे पठण किंवा मनन केल्यामुळे होणाऱ्या फायद्याचे वर्णन आहे.म्हणूनच नऊ श्लोक असूनही या स्तोत्राचा उल्लेख कालभैरवाष्टकम् असाच केला जातो.

काळभैरव आदियोगी शंकराचेच एक रूप समजले जाते. या उग्र रूपाचा उल्लेख क्षेत्रपाल असाही केला जातो. काशीच्या तटावर त्यांचं वास्तव्य असल्याचा समज श्रद्धाळू भक्तांमध्ये आहे. आदि शंकराचार्य यांनी काळभैरवाला प्रसन्न करण्यासाठी या स्तोत्राची रचना केली असे सामान्यपणे समजले जाते. https://www.youtube.com/watch?v=buTX4W69nXw

कालभैरवाष्टकम्

(काळभैरव अष्टक)

ॐ देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् । 
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ १॥

भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् । 
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ २॥

शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् । 
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ३॥

भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् । 
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ ४॥

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशनं कर्मपाशमोचकं सुशर्मधायकं विभुम् । 
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांगमण्डलं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ५॥

रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम् । 
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ६॥

अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं दृष्टिपात्तनष्टपापजालमुग्रशासनम् । 
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ७॥

भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् । 
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ८॥

॥ फल श्रुति॥

कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् । 
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं ते प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम् ॥

॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं कालभैरवाष्टकं संपूर्णम् ॥

या स्तोत्राचे पठण बऱ्याच लोकांनी करून यूट्यूब वर टाकल्या आहेत. पण मला त्यातली आवडणारी म्हणजे कुलदीप पै अनिरुद्ध रामकुमार या गुरुशिष्य द्वयीची आहे, ती वर दिलीच आहे. शिष्याची गायनाची तयारी आणि त्याचे सुस्पष्ट आणि अचूक उच्चार स्तिमित करतात. कुलदीप पै आपल्या धूळ खात पडलेल्या (का स्वातंत्र्यानंतर ६५ वर्षे मुद्दाम बाजूला सारलेल्या) अमूल्य सांस्कृतिक (बहुतांशी संस्कृत भाषेतील) खजिन्यातील रत्ने एक एक करून बाहेर काढताहेत. बऱ्याच वेळा त्यांच्याबरोबर एखादी शिष्य/शिष्या बरोबर असतो/असते. सूरगायत्री नावाच्या एका चुणचुणीत टपोऱ्या डोळयांच्या व गोड गळ्याच्या बालगायिकेबरोबर त्यांनी खूप स्तोत्रे आणि संस्कृत स्तुतीपर काव्ये गायली आहेत आणि पुढील पिढ्यानपिढ्यांसाठी एक अनमोल सांस्कृतिक ठेवा तयार करून ठेवला आहे.

कालभैरवाष्टकम् स्तोत्राचे मला वाचून कळलेला अर्थ मी मांडतो, कोणालाही माझ्याकडून माझ्या अज्ञानापोटी चूक झाली आहे असे वाटल्यास जरूर दाखवून द्यावी, मला तुमच्याकडून शिकायला आवडेल

कालभैरवाष्टकम्

ॐ देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं 
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥१॥

अर्थ: देवराज इंद्र ज्या पवित्र पावलांची सदैव सेवा करत असतात , ज्यांनी चंद्रकोर आपल्या शिरी शिरपेचासारखी घातली आहे, ज्यांनी सर्पांची माळ यज्ञोपवीतासारखी आपल्या गळ्यात घातली आहे, मुनी नारदांसकट सर्व ऋषीयोगी ज्यांच्या समोर कायम नतमस्तक होतात, अशा काशीपुरीच्या स्वामींची-काळभैरवांची- मी आराधना करतो (भजतो) आहे.

भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं
नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥२॥

अर्थ:  जो कोट्यावधी सूर्यांच्या तेजाने तळपतो आहे,  जो भवसागरातून तरून जायला मदत करतो,ज्याचा कंठ निळा आहे, जो त्रिलोचन (तीन डोळे असलेला) आहे, आणि आपल्या भक्तांच्या सर्व इच्छा साध्य करून देतो,  जो काळाचा काळ (महाकाळ) आहे, ज्याचे डोळे कमळासारखे सुंदर ब रेखीव आहेत, आणि ज्याने त्रिशूल आणि रुद्राक्ष  धारण केले आहेत,  अशा काशीपुरीच्या स्वामींची-काळभैरवांची- मी आराधना करतो (भजतो) आहे.

शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥३॥

अर्थ: ज्याची कांति सावळी आहे, आणि ज्याने शूल, टंक, पाश, दंड आदि शस्त्रे धारण आहेत, आणि जो आदिदेव, अविनाशी व आदिकारण आहे, जो महापराक्रमी आहे आणि  अद्भुत तांडव नृत्य करतो, अशा काशीपुरीच्या स्वामींची-काळभैरवांची- मी आराधना करतो (भजतो) आहे.

भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥४॥

अर्थ:  जो भुक्ति तथा मुक्ति प्रदान करते है, जिनका स्वरूप प्रशस्त तथा सुंदर है, जो भक्तों को प्रिय है, चारों लोकों में स्थिर है, जिनकी कमर पे करधनी रुनझुन करती है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ.

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥५॥

अर्थ: जो धर्म मार्गाचा रक्षक तसेच अधर्ममार्ग चा नाश करणारा आहे, जो कर्मपाशाचा नाश करून मुक्ती देणारा आहे तसेच सर्वांचे कल्याण करणारा आहे, ज्याने सोनेरी शेषनाग आपल्या गळ्यात हारासारखा घातला आहे, ज्याने संपूर्ण अंग सुशोभित झाले आहे, अशा काशीपुरीच्या स्वामींची-काळभैरवांची- मी आराधना करतो (भजतो) आहे.

रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम् ।
मृत्युदर्पनाशनं कराळदंष्ट्रमोक्षणं 
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥६॥

अर्थ:  ज्याने रत्नजडित पादुका (खडावा) घातल्या आहेत, आणि ज्याची कांति तेजस्वी आणि सुशोभित आहे, जो नित्य निर्म, अविनाशी, अद्वितीय आणि सर्वांचा प्रिय लाडका देव आहे, जो मृत्यूचा प्रभाव दूर करतो, तसेच जो काळाच्या अक्राळविक्राळ भयानक दातातून मुक्ति देतो,  अशा काशीपुरीच्या स्वामींची-काळभैरवांची- मी आराधना करतो (भजतो) आहे.

अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसन्ततिं
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥७॥

अर्थ:  ज्याच्या अट्टाहासाने संपूर्ण ब्रह्मांड विदीर्ण होते, आणि ज्याच्या एका दृष्टिपाताने सगळ्या पापांचे बंधनकारक जाळे नष्ट होते, तसेच ज्याचे शासन कठोर आणि उग्र आहे, ज्याने कपाळमाळा धारण केली आहे आणि ज्याने विश्वाला आठ प्रकारच्या सिद्धि प्रदान केल्या आहेत, अशा काशीपुरीच्या स्वामींची-काळभैरवांची- मी आराधना करतो (भजतो) आहे.

भूतसङ्घनायकं विशालकीर्तिदायकं
काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥८॥

अर्थ: जो सगळ्या भूतसंघाचा नायक आहे, आणि जो सर्वात विशाल कीर्तिदायक आहे, जो काशीपुरी मध्ये राहणाऱ्या सर्व भक्तांच्या पाप-पुण्याचा हिशोब ठेवतो तसेच सर्वव्यापी आहे, जो नीतिमार्ग दाखवून देतो, जो पुरातनापेक्षा अधिक पुरातन आहे, आणि संपूर्ण विश्वाचे स्वामित्व ज्याच्याकडे आहे, अशा काशीपुरीच्या स्वामींची-काळभैरवांची- मी आराधना करतो (भजतो) आहे.

फलश्रुती:

कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं
ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम् ॥९॥

अर्थ: ज्ञान आणि मुक्ति मिळवण्यासाठी , भक्तांच्या विचित्र पुण्य वाढविण्यासाठी, शोक, मोह, दैन्य, लोभ, कोप-ताप इत्यादींचा नाश करण्यासाठी, जे कालभैरवाष्टक चा पाठ करतात, ते निश्चितच कालभैरवाच्या चरणी लीन होतात.

॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं कालभैरवाष्टकं संपूर्णम् ॥

।। असे श्रीमद शंकराचार्य यांनी रचलेले काळभैरवाष्टक संपूर्ण झाले।।

याच स्तोत्राचे नूतन पद्धतीने आणि वाद्यसंचयाच्या साथीत गायन पहा, थोडेसे वेगळे वाटेल, पण जरूर ऐका: https://www.youtube.com/watch?v=b35za_eUJ98

कर्वेकका तुमची आठवण झाली आणि तिथून मी उज्जैन आणि काळभैरव मंदिरात पोचलो! खूप बरे वाटले, शुभरात्री!

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शालीनतेची सीमा…..

आज तीन दिवस झाले, मराठी चित्रपटातली एक प्रसिद्ध अभिनेत्री आणि माझ्या लहानपणी पाहिलेल्या चित्रपटात मला सर्वात आवडलेली अशी लाघवी स्मितहास्याची मालकीण, सीमा (देव) अचानक राहत्या घरी पुढील प्रवासास निघून गेली. खरे तर त्यांच्याबद्दल एकेरी उल्लेख करणे योग्य नाही, पण माझ्या लहानपणी माझी खूप आवडती असलेली ही अभिनेत्री, नेहमीच माझ्या मनात तिच्या लोभस हास्याने राहणारी व तशीच आठवणारी.

गिरगावात जन्मलेल्या नलिनी सराफ यांच्यावर कुटुंबाच्या उदरनिर्वाहाची जबाबदारी खूप कमी वयात अचानक येऊन पडली. गुणी कलाकार असलेली ही मुलगी. रमेशजी तिच्या प्रेमात पडले यांत आश्चर्य ते काय? महाराष्ट्रात तत्कालीन तरूणांमध्ये लाखो तरुण तिच्या मोहक चेहऱ्यावर फिदा झाले होते. सीमा या  नावाने एक जमाना गाजवणाऱ्या या अभिनेत्रीने कधीही स्वतःची शालीन, सोज्वळ अशी प्रतिमा डागाळू दिली नाही. अपराध मधली “ती” भूमिका तशी काहीशी चाकोरीबाहेरचीच म्हणायची!

मी तिचा पाहिलेला पहिला चित्रपट म्हणजे उन्हाळ्याच्या सुट्टीत सकाळी विजय टॉकीज (नन्तरचे लिमये नाट्य चित्र मंदिर) इथे पाहिलेला (सकाळच्या शो ला “मॅटीनी‘’ असे उल्लेखले जाई), व नन्तर मुंबई दूरदर्शनवर एका शनिवारी सायंकाळी पाहिलेला “सबकुछ राजा परांजपे” असलेला “जगाच्या पाठीवर”! यातील सीमाचा  अभिनय म्हणजे खऱ्या अर्थाने अविस्मरणीय! या चित्रपटात खरेतर बरीच गाणी खूपच छान आहेत. त्यातील एक गाणे सीमाच्या तोंडी नसूनही मला खूप आवडते, त्यातील मतितार्थामुळे. हे गाणे म्हणजे एका अर्थाने गदिमांनी सांगितलेले आयुष्याचे सारच आहे. https://youtu.be/mvUR0OWvigw?si=w2lioc50kr3CMSwK

गदिमा, राजा परांजपे आणि बाबूजी! केव्हढे थोर लोक! आपापल्या परीने खरीच मोठी माणसे!

एक धागा सुखाचा शंभर धागे दुःखाचे
एक धागा सुखाचा शंभर धागे दुःखाचे
जरतारी हे वस्त्र माणसा तुझिया आयुष्याचे
एक धागा सुखाचा

पांघरसी जरि असला कपडा
येसी उघडा जासी उघडा
पांघरसी जरि असला कपडा
येसी उघडा जासी उघडा
कपड्यासाठी करिसी नाटक तीन प्रवेशांचे
एक धागा सुखाचा

मुकी अंगडी बालपणाची
रंगित वसने तारुण्याची
मुकी अंगडी बालपणाची
रंगित वसने तारुण्याची
जीर्ण शाल मग उरे शेवटी लेणे वार्धक्याचे
एक धागा सुखाचा

या वस्त्राते विणतो कोण
एकसारखी नसती दोन
या वस्त्राते विणतो कोण
एकसारखी नसती दोन
कुणा न दिसले त्रिखंडात त्या हात विणकऱ्याचे
एक धागा सुखाचा

किती अर्थपूर्ण शब्द आहेत आणि किती हळुवारपणे सादरीकरण केले आहे बाबूजींनी! मिश्र शिवरंजनी रागावर आधारित हे सर्वार्थाने अमर गाणे! https://youtu.be/-ehzPVwPGfo?si=ERzk_FpQ1dlwoHNl

याच चित्रपटात मला खूप आवडणारे एक गाणे आशाबाईंनी म्हटले आहे, बैठकीतील लावणी आहे आणि चित्रीकरण करताना प्रेक्षकांत दिसताहेत दस्तुरखुद्द गदिमा! चित्रीकरण केलं आहे ते रेखा कामत यांच्यावर! त्या गाण्याबद्दल नन्तर कधीतरी!

सीमाने मराठी व हिंदी चित्रपटात सर्वांगसुंदर, शालीन अभिनयाने आपला वेगळा ठसा उमटवला, एक अढळ स्थान निर्माण केले. आनंद मधले सीमाची भूमिका मला राजेश खन्ना नन्तर जास्त लक्षात राहते, अगदी अमिताभ च्या भास्कर बॅनर्जी पेक्षाही जास्त ! एव्हढी सुंदर अभिनेत्री तीन दिवसांपूर्वी काळाच्या पडद्याआड गेली, रमेशजी गेल्याच वर्षी गेले होते, आता सीमा पण सीमा ओलांडून आपल्या प्रवासास निघून गेली. कालाय तस्मै नमः! आज रात्री एव्हढेच! ईश्वरेच्छा बलीयसी ! शुभरात्री

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A day for dedication to the divine by the devoted…

Today marks the culmination of an annual pilgrimage in my state that is unique. It has been going on for more than 800 years, and has gone on without any disruption bar the two years of the Chinese virus pandemic engineered in a Wuhan laboratory. Millions of people, mostly men from all parts of the state journey from their homes to converge on the holy town of Pandharpur in South Maharashtra to celebrate the day when the preserver of the universe, Shri Vishnu takes his annual period of rest in Kshirasagar. The 11th day of the Shuddha paksha of Ashadh, when the Sun moves into the constellation Gemini marks the beginning of the four months of Chaturmas. The day is therefore also called Devashayani Ekadashi ( & also Shayani Ekadashi or even Padmanabh). The four months period will end on a similar Ekadashi in Kartik, when the Sun moves into Libra.

The annual pilgrimage in Maharashtra is unique also because every stratum of society and age group is represented. Millions of humans who identify with the devotion towards the divine and do not think of anything else. The annual journey is called the wari and the participants warkari. It is extremely common for a person who is rich, older and well known in his town/district/state to bow and touch the feet of a total stranger who might be much younger and far removed in geographic terms and/or social ranking. This is a unique phenomenon. I have several patients who are members of the second largest religious denomination in Maharashtra who regularly participate in the pilgrimage. They read the Dnyaneshwari and Gatha, are vegetarian and participate in the wari virtually every year. And are ecstatic in reaching Pandharpur and seeing the object of their pilgrimage from a distance, it just isn’t possible for the gathered millions to go in for a darshan from up close on the given day.

For this special day, I started the day with a melody that’s my father’s favourite and also of the rest of the family. From the divine legend who is so close to all of us. https://youtu.be/tpB0lyPwUs4

करारविन्देन पदार्विन्दं, मुखार्विन्दे विनिवेशयन्तम्।
वटस्य पत्रस्य पुटेशयानं, बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि॥

I meditate upon Bal-Mukund (The Infant Shrikrishna), lying on a a bed of banyan leaves. His hands, his feet, his face, are all beautiful, delicate and pure like a lotus flower.

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव।
जिव्हे पिबस्वामृतमेव देव, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

 O Lord, may my tongue speech only utter your many names ( Shrikrishna, Govind, Damodar, Madhav and the like) and savour and love the nectar like pleasure from this.

विक्रेतुकामाखिल गोपकन्या, मुरारि पादार्पित चित्तवृतिः।
दध्यादिकं मोहावशादवोचद्, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

The women amongst the cowherds who left their homes wanting to sell milk, curds, butter got so taken up by your beauteous childlike appearance, that out of the love and devotion, having submitted themselves at your lotus feet, they are only chanting your names aloud: Govind, Damodar, Madhav and the like

गृहे-गृहे गोपवधू कदम्बा:, सर्वे मिलित्वा समवाप्ययोगम्।
पुण्यानि नामानि पठन्ति नित्यं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

These women gather in different homes on auspicious occasions and engage continuously in this sublimating and enchanting act of devotion: remembering Shrikrishna and chanting his various names: Govind, Damodar, Madhav and the like

सुखं शयाना निलये निजेऽपि, नामानि विष्णोः प्रवदन्तिमर्त्याः।               
ते निश्चितं तन्मयतमां व्रजन्ति, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

An ordinary mortal alike while resting at home by remembering Shrikrishna and chanting his names Govind, Damodar, Madhav and the like definitely achieved unity with the Divine.  

जिह्‍वे दैवं भज सुन्दराणि, नामानि कृष्णस्य मनोहराणि।
समस्त भक्तार्ति विनाशनानि, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

O my tongue and mind, only remember and utter the beautiful and beatific names of Shrikrishna like Govind, Damodar, Madhav and the like, which will always remove all obstacles in the paths of the believers.

सुखावसाने इदमेव सारं, दुःखावसाने इदमेव ज्ञेयम्।
देहावसाने इदमेव जाप्यं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

This is the only real essence at the end of a pleasure filled life and one with sorrows as well, one should chant the names of the Lord when it is time to renounce one’s physical body, Govind, Damodar, Madhav and the like.

श्रीकृष्ण राधावर गोकुलेश,गोपाल गोवर्धन – नाथ विष्णो ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव,गोविन्द दामोदर माधवेति ॥

O my tongue and soul, savour these nectar like names, Shrikrishna, The Lord of Radha, Gopal- The Lord of Gokul, The Lord who lifted the mountain Govardhan, Shri Vishnu, Govind, Damodar, Madhav and the like.

जिह्‍वे रसज्ञे मधुरप्रियात्वं, सत्यं हितं त्वां परमं वदामि।
आवर्णये त्वं मधुराक्षराणि, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

O my tongue you are fond of various savouries which have differing tastes. But let me you tell you the ultimate truth that is in your interest: utter, chant and savour only the sweet names (of the Lord) that are akin to nectar, Govind, Damodar, Madhav and the like.

त्वामेव याचे मन देहि जिह्‍वे, समागते दण्डधरे कृतान्ते।
वक्तव्यमेवं मधुरम सुभक्तया, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

O my tongue and soul, I implead you , it is my earnest prayer to you, when my final hour approaches, then do utter only these sweet names with complete devotion and submission: Govind, Damodar, Madhav and the like.

श्री नाथ विश्वेश्वर विश्व मूर्ते, श्री देवकीनन्दन दैत्य – शत्रो ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव,गोविन्द दामोदर माधवेति ॥

My Lord, the master of the entire Universe , The embodiment of the entire Universe, the Son of Devaki and the destroyer and mortal enemy of all demons, may my tongue savour eternally the sweet nectar of your divine names: Govind, Damodar, Madhav and the like.

A stotra written by Bilwamangala Thakur, who was brought out of a decadent life of a womaniser by one of his mistresses and shown the true path of devotion, he blinded himself as he couldn’t focus on Bhakti and wrote this amazing stotra.

I honestly don’t think any other rendition of this stotra by scores of other, otherwise very accomplished singers comes close to evoking the purity of devotion as Pandit Jasrajji is able to in his unique style. I have never heard any other artiste beyond a minute or so as a result, without meaning any disrespect to any of them, my senses are so used to being satiated by Panditji, I cannot bear the thought of giving that space to anyone else, a personal failing, but that’s the way it is.

Stay healthy, folks, stay happy while my day will be spent listening to melodies of this genre.

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The thirst that cannot be quenched…..

This is one divine piece of music that my Dad loved. I would watch him get lost in the words, the beautiful composition, the sublime vocals…. Just thinking of those moments makes me tear up even today. I think I inherited the passion for music from him and literature from my mom, who’s a great writer and avid student of the Dnyaneshwari. She’s had many books published encompassing a very wide variety of subjects.

Both he and I have remained great fans of Mehdi Hasan and Jagjit Singh, who he absolutely adored.

Listen to one rendition of this awesome ghazal. Only a stone hearted insensitive soul would refuse to be moved. To me, this is straight from my heart to God, I would have loved to spend a few more days with Him. That’s human nature, isn’t it? Never satisfied with a few decades of staying under the same roof. We cry when we lose a parent, we cry when we lose a child, we are never really prepared for the one inevitable truth that’s part of the life of every single living being in the universe. The physical form will be given up, the atman will change the vestment till the Supreme being welcomes it to merge with Him/Her. Energy is constant in the universe, it may just take different form from time to time. Listen to the captivating song and get a taste of an absolutely sublime gem. https://youtu.be/sB9nBIHkz7o

The soul of the ghazal is its meaningful verse. More than any other vocal musical genre. Rana Akbarabadi was surely blessed with a revelation. He has certainly fulfilled his part of the covenant.

सुनते हैं के मिल जाती है हर चीज़ दुआ से


सुनते हैं के मिल जाती है हर चीज़ दुआ से
इक रोज़ तुम्हें माँग के देखेंगे ख़ुदा से

दुनिया भी मिली है ग़म-ए-दुनिया भी मिला है
वो क्यूँ नहीं मिलता जिसे माँगा था ख़ुदा से

ऐ दिल तू उन्हें देख के कुछ ऐसे तड़पना
आ जाये हँसी उनको जो बैठे हैं ख़फ़ा से

जब कुछ ना मिला हाथ दुआओं को उठा कर
फिर हाथ उठाने ही पड़े हमको दुआ से

आईने में वो अपनी अदा देख रहे हैं
मर जाए की जी जाए कोई उनकी बला से

तुम सामने बैठे हो तो है कैफ़ की बारिश
वो दिन भी थे जब आग बरसती थी घटा से

(कैफ़ = मद, नशा, आनंद)

—-राणा अकबराबादी

Listen to another rendition , the same song, the flavour a little different, but the effect is the same. You become one with the Supreme being. https://youtu.be/s2BMfrxoVUU

Stay blessed folks, take care. The promised landfall of the Cyclone in the Arabian Sea hasn’t happened, I suppose because it read the Met Department’s forecast. In India it is sometimes a very paying proposition to be constantly and consistently wrong …

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चिरंजीव आणि अजेय

माझ्या लहानपणी आम्ही जवळजवळ प्रत्येक सुट्टीत माझ्या मोठ्या आत्याकडे पुण्यात थोडे दिवस राहायला यायचो. माझे वडील त्याकाळी भारतीय वायुदलात होते त्यामुळे बाबांची ड्युटी कुठेही असे. नेहमीच महाराष्ट्रापासून दूर भारताच्या चारी कोपऱ्यात आम्ही जाऊन राहिलो आहोत. माझे आतोबा एकनिष्ठ सावरकरवादी आणि हिंदूमहासभेचे सदस्य होते. त्यांच्या मुळे आत्याच्या घरी स्वतः ची तालीम होती. तालिमीतली लाल माती आणि त्याची वेळोवेळी केलेली तेल, कापूर घालून केलेली मशागत मला स्पष्ट आठवते आहे. माझ्या आत्याच्या सर्व मुलांनी तालीम केली आणि त्यातील तीन भारतीय विश्वविद्यालय पातळीवर राष्ट्रीय विजेते झाले होते. माझा दोन नंबरचा आतेभाऊ राष्ट्रीय क्रीडा संस्थेत कुस्तीचा मुख्य प्रशिक्षक होता. त्याचे नाव भालचंद्र भास्कर भागवत आंतरराष्ट्रीय पातळीवर सुद्धा विश्वविद्यालयीन कुस्ती स्पर्धा पोलंड मध्ये गाजवून आला होता. अतिशय पिळदार शरीर, नेहमी हसतमुख चेहरा आणि आम्हां सर्व पोरांमध्ये मिळून मिसळून वागणारा हा कुस्तीगीर. हिंदकेसरी सतपाल पासून काका पवार वगैरे त्याचे शिष्य. भारतातील पहिला वहिला द्रोणाचार्य पुरस्कार त्याला मिळाला. त्याने कुस्तीचे काही डाव मला शिकवले होते त्यातील काही वापरून मी काही कठीण प्रसंगात तरून गेलो आहे. अगदी एकदा फर्गसन कॉलेजमध्ये खेळताना एका दांडगटाला धोबीपछाड लावून अस्मान दाखवून दिवसा त्याला तारे दाखवले होते. त्या तालमीत मी ज्याचे एक पूर्णाकृती तैलचित्र पाहिले होते, त्या चिरंजीव, सर्वात ज्येष्ठ रामभक्त अंजनिपुत्र हनुमानाचा आज जन्मोत्सव!

शौर्य, भक्ती, निष्ठा सर्व गुणांचा परमोच्च बिंदू म्हणजे वायूपुत्र हनुमान! त्याचे स्तोत्र खूप लहानपणी शिकलो. मोठा झाल्यावर बाबूजींनी त्यांच्या एकमेवाद्वितीय आवाजात हे गाणे गायले आहे ते कानावर पडले. https://youtu.be/T2xAnCbkPGw

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम आणि त्यांची स्तुती गाण्यात देहभान विसरून गाणारा भक्तश्रेष्ठ हनुमान असे हे चित्र बाबूजींनी त्यांच्या स्वर्गीय गाण्यातून डोळ्यासमोर उभे केलेले दिसते. महाराष्ट्र वाल्मिकी ग दि माडगूळकर यांच्या लेखणीतून उतरलेले हे टपोऱ्या तेजस्वी मोत्यांसारखे शब्द, यशवंत देव यांची संगीतरचना आणि त्यावर बाबूजींचे गायन! एकदम दुग्धशर्करा, मणिकांचन वगैरे सगळेच योग एकदम आल्यावर जे होईल तसे घडून आले आहे.

रामचंद्र स्वामी माझा, राम अयोध्येचा राजा

रामचंद्र स्वामी माझा, राम अयोध्येचा राजा ॥धृ.॥

राम सज्जनांचा त्राता, हाती धनु पृष्ठी भाता
राम दुर्जनांचा वैरी, राम त्राटिकेसी मारी ॥१॥

रामे धनुष्य मोडिले, नाते सीतेशी जोडिले
राम जानकीचा नाथ, पराक्रमी पुण्यवंत ॥२॥

राम वनवासी झाला, पितृवचनी गुंतला
राम भुलावण केली, शूर्पणखा विटंबिली
राम शूर शिरोमणी, एक पत्नी एक बाणी ॥३॥

रामा राक्षसे भोवली, सीता दशानने नेली
राम लोचने पेटली, रामे निर्दालिळा वाली
राम किष्किंधेसी आला, सखा सुग्रिवाचा झाला ॥४॥

रामे सैन्य मेळविली, चाल लंकेवरी केली
राम आला, राम आला, रामे सागर जिंकीला
रामा आडवितो कोण, जळी स्थिरले पाषाण
मरू घातला रावण, मार्गे चाले ‘रामायण’ ॥५॥

रामाचा भक्त म्हणवून घेण्यात कोणाला सर्वात जास्त आनंद होतो तर कपीश्रेष्ठ मारुतरायाला! एक संजीवनी आणण्याऐवजी मूर्च्छित लक्ष्मणाचा उपचार करण्यासाठी हनुमान हिमालयात उड्डाण करून गेला. पर्वतावर त्याला हवी ती वनस्पती ओळखू न आल्याने त्याने संबंध द्रोणागिरी पर्वत उचलून आणला. ही गोष्ट आजीकडून ऐकली की मला आनंदाच्या अगदी उकळ्या फुटत. मारुतीचे विराट स्वरूप, त्याच्या पराक्रमाच्या गोष्टी ऐकून खूप स्फुरण येई, नशीब गुळाचा गणपती मधल्या पु लं सारखा काही उद्योग आम्ही त्या वेळी करून ठेवला नाही. मारुतीचे प्रताप आणि त्याचे गुण कळता कळता आयुष्य गेले तरी नेहमी काहीतरी नवे पैलू कळतातच!

अशा या चिरंजीव आजन्म ब्रह्मचारी योग्याला माझा त्याच्या जन्मोत्सवाच्या दिवशी विनम्र प्रणाम. राष्ट्राचे पुनर्निर्माण होत असताना असे कित्येक हनुमान हवेत या देशाला वाचवायला आणि मरगळलेल्या लोकांना आणि झाकोळलेल्या राष्ट्रतेजाला पुनश्च उजळविण्यासाठी- काय येता का पुढे?

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The fulfilling finale to a momentous day

Ramanavami celebrates the day of appearance on the Earth of ShriVishnu as the Shriram avataar. Born after a number of barren years for Dasharath, who was unhappy (as were his three Queens) and whose fondest desire of begetting a child was fulfilled after penance and the resulting Paayasdaan. The day when every Sanatan dharmi on the planet looks inwards and invokes that piousness and righteousness that is Prabhu Shriram. As every concert in Hindustani Classical Music ends with a certain raag, which is considered the very last melody just before bringing the curtains down, the raag Bhairavi is frequently entrusted with this task. In the days when the concerts lasted all night long, it was only right that a sampoorna-sampoorna raag of the early morning be used as an end-of-the-concert-rendition. These days, though the various restrictions imposed on all night music concerts means that the early morning raag is often performed in the late night hours. Listen to this divine rendition in Bhairavi which is steeped in Bhakti rasa, that you don’t need and neither want anything to play after this. Truly the last word…. https://youtu.be/2E6gQiRu9Aw

Who better to do the honours than Bharatratna Swarbhaskar Pandit Bhimsen Joshi? He was a colossus in Hindustani Classical Music who strode both fields of Classical music as a singer from the Kirana Gharana and truly remains one the very best I’ve ever heard, -and the fulfilling field of devotional/ spiritual music, where he did yeoman service by pleasing the Pantheon of Divinities (with Pandit Jasraj ji- who can forget his soothing spiritual music that’s a soul tonic) & lifting mere mortals like me to an entirely different plane of spiritual satisfaction. This bhajan is by Sant Tulsidas who wrote the most famous and widely read treatise on Prabhu Shriram: the Ramcharitmanas. Just listening to him sing just a few lines is so serene and satisfying, I am teared up.

भजमन राम चरण सुखदाई

भजमन राम चरण सुखदाई,
भजमन राम चरण सुखदाई ॥

जिहि चरननसे निकसी सुरसरि
संकर जटा समाई ।
जटासंकरी नाम परयो है
त्रिभुवन तारन आई ॥

भजमन राम चरण सुखदाई,
भजमन राम चरण सुखदाई ॥

जिन चरननकी चरनपादुका
भरत रह्यो लव लाई ।
सोइ चरन केवट धोइ लीने
तब हरि नाव चलाई/चढ़ाई ॥

भजमन राम चरण सुखदाई,
भजमन राम चरण सुखदाई ॥

सोइ चरन संत जन सेवत
सदा रहत सुखदाई ।
सोइ चरन गौतमऋषि-नारी
परसि परमपद पाई ॥

भजमन राम चरण सुखदाई,
भजमन राम चरण सुखदाई ॥

दंडकबन प्रभु पावन कीन्हो
ऋषियन त्रास मिटाई ।
सोई प्रभु त्रिलोकके स्वामी
कनक मृगा सँग धाई ॥

भजमन राम चरण सुखदाई,
भजमन राम चरण सुखदाई ॥

कपि सुग्रीव बंधु भय-ब्याकुल
तिन जय छत्र फिराई/धराई ।
रिपु को अनुज बिभीषन निसिचर
परसत लंका पाई ॥

भजमन राम चरण सुखदाई,
भजमन राम चरण सुखदाई ॥

सिव सनकादिक अरु ब्रह्मादिक
सेष सहस मुख गाई ।
तुलसीदास मारुत-सुतकी प्रभु
निज मुख करत बड़ाई ॥

भजमन राम चरण सुखदाई,
भजमन राम चरण सुखदाई ॥

The same bhajan has been performed by virtually the who’s who of music in India, most famously by Bharatratna Vidushi M S Subbulakshmi, whose divine voice soars with felicity in the rarefied, ethereal plane of utter devotion. https://youtu.be/A_ZCXFw9i08

Bhairavi is often referred to as the queen of morning raags. It produces a rich, devotional atmosphere especially suitable for the rendition of Bhajans. I have a tough time deciding which of the two I like better.

Best to stop comparing and just enjoy as the gentle, endearing waves of devotion wash over you. Here’s Panditji once again, the rare recording was made in a private concert, but you’ll find his intensity unmellowed. The hallmark of a genius and a legend… https://youtu.be/D8RfvE2pqMo

Stay happy, I will be lost in the love for the Lord.

Stay healthy and happy

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Submission to the supreme being…

The morning dawned with this truly brilliant watercolour from my extremely creative and famous Orthopaedic Surgeon friend from Mumbai, Dr Rajesh Nawalkar. He is a wonderful and amazingly prolific painter. Always a pleasure and inspiration to get his sublime art in my inbox.

Today, Chaitra Shuddha Navami marks the day Shrivishnu took incarnation in a human form to help Humanity reset its moral compass and triumph over the tyranny of evil. Prabhu Shriram was born in the Suryavamsha, and in Ayodhya founded by The Prajapati Manu and his son Ikshvaku, the great grandson of Raghu, the grandson of Aja and the son of Dasharath. Shriram was born to Kausalya, the Queen of Ayodhya, at around midday on this date. The record of his lifetime is to all Indians a source of eternal inspiration and guidance, history and spiritual guide rolled into one. A religious text as well as a ready reckoner for a common man in daily life.

Rishi Valmiki, a contemporary of Prabhu Shriram is considered the first poet of the world. When he was passing by a river Tamasa, he was enchanted by the purity of the stream and decided to bathe in it. Just as he was to step in the water, a hunter shot an arrow, killing one of a pair of Cranes (“Kraunch”), the mate died instantly of grief and shock. Valmiki, shocked at the turn of events, became enraged and is said to have composed the first two lines of the Epic poem, as an admonition and curse for the hunter:

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम्॥’

mā niṣāda pratiṣṭhā tvamagamaḥ śāśvatīḥ samāḥ
yat krauñcamithunādekam avadhīḥ kāmamohitam

“You will find no rest for the long years of Eternity, For you killed an unsuspecting bird in love.”

Emerging spontaneously from Valmiki’s rage and grief, this is considered to be the first shloka in Sanskrit (& therefore World) literature. Valmiki later composed the entire Ramayana with the blessings of the God Brahma in the same meter that issued forth from him as this shloka. Thus this shloka is revered as the first shloka in Global literature. Valmiki is revered as the first poet or Adi Kavi and Ramayana, as the first kavya (poem): Adikavya.

Of the many versions of Ramayan authored by the many legends and venerable thinkers and authors, Tulsidas‘s Ramayan is arguably the most popular one after the Valmiki Ramayan.

Listen to the bhajan by Sant Tulsidas that was used so beautifully by the unmistakable genius Jaidev Verma in a movie made by Amol Palekar in the 80s, Ankahee. https://youtu.be/keYtUjqubc8

The composition is in Mishra Khamaj and wonderfully created by Jaidev. The unmistakable vocals are by Bharatratna Pandit Bhimsen Joshi, who I was fortunate enough to meet. Bhimsenji’s contributions in Hindustani Classical Music as well as the field of Devotional music are legendary and unique, the latter in multiple languages. Listening to him in any mode is a deeply engrossing and spiritual experience and I am frequently moved to tears doing that.

रघुवर तुमको मेरी लाज ।
सदा सदा मैं शरण तिहारी,
तुम हो गरीब निवाज़ ॥

पतित उद्धारण विरद तिहारो,
शरावानन सुनी आवाज ।
हूँ तो पतित पुरातन कहिए,
पार उतारो जहाज ॥

अघ खंडन दुःख भन्जन जन के,
यही तिहारो काज ।
तुलसीदास पर कृपा कीजे,
भक्ति दान देहु आज ॥

My humble respect to Adikavi Valmiki, Sant Tulsidas and Bharatratna Pandit Bhimsen Joshi for their unparalleled contributions to the spiritual field. Credit also to Jaidev ji for this amazing, introspective composition. Stay blessed everyone, by His presence and eternal guidance and blessings.

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Melodious morning….

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा

Today is the beginning of a new year for many Hindus around the world, and is given different names.

The new morning brings in new hopes, new targets, new aspirations, new action.

The chronological classification of raags in Hindustani Classical Music is very intricate and well accepted by those who understand the genre. The ideal evocative raag for the morning (6 am-9 am) is Ahir Bhairav. This is a raag of the Bhairav thaat which has a mixture of Bhairav and an old raag Ahiri or Abhiri. It is a sampoorna – sampoorna raag with all seven sur, with rishabh and nishad komal and all the other five shuddha. It can be played/sung and elaborated and evokes a sense of calm introspection as well as devotion.

The first composition is from a 60s movie Meri Soorat Teri Aankhein. Composed by the genius Sachindev Burman, the lyrics are by Shailendra and the vocals are by Manna Dey and Shiv Dayal Batish. One of the wonderful classical melodies and memories millions of my contemporaries will love and remember. https://youtu.be/s0XXy00dEvU

No other singer can raise my feelings to the level of exaltation and ecstasy as Manna Dey. He is a great artist. His individuality is as great as his uncle K C Dey” is what another great, Mohammad Rafi said about him. Look at the amazing differing moods brought in by Manna Dey into his voice.

The same raag was used by my most favourite music director, the unmistakable genius, Salil Chowdhury, in a biopic on Swami Vivekananda. The lyrics are by Gulzar and the wonderful vocals are by Yesudas. An amazing auditory experience. https://youtu.be/6xRDl85vA_U

To wind up, one must have my most favourite instrument, the flute and the greatest flautist in my lifetime, Pandit Hariprasad Chourasia. The great man built on what Pandit Pannalal Ghosh had done a generation earlier and then took the instrument to an astral level. Today every young flautist wants to achieve a fraction of what he has in his brilliant career.

We were lucky he visited our college multiple times in the 70s, enthralling us with his divine skills which are nothing but an act of becoming one with the Supreme Being. He has multiple times in his renditions achieved Samadhi. https://youtu.be/sk_NktgvcJM

Stay healthy, folks as a new year dawns on us and spurs us into actions which will take us to greater heights and allow us to help others more than the last year.

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It rained pots and pans, buckets and kettles….

It was overcast from the early morning and the weatherman ( or shall we say weatherperson to be more politically correct or “Woke” ) . The skies were distinctly dark grey in the early morning and I told Aruna “it looks it is going to rain”. The expectations appeared to have been belied as the sun came blazing out, albeit a tad late. Late afternoon saw the clouds stage a comeback and just as I returned from work and had just finished my regulation “Fauji mug” full of steaming tea, hell pretty much broke loose. Thank God Choco had already polished off his meal (the only canine I have ever known who wants curds or paneer poured on rice with chicken- or he won’t touch it: the kid is crazy!) As the dark grey skies were crisscrossed by giant incandescent bright flashes of lightning that made a crazy pattern across the heavens, the clouds decided to dump the moisture they were carrying on earth. The first cannonade of thunder and our li’l tornado was miraculously transformed into an ascetic performing penance. The kid was shivering with fear, poor thing, and I took him in my arms and cuddled and comforted him. I felt the shivering abate as he slept with his head in my lap. Dollar wouldn’t be scared by thunder, lightning or Diwali crackers (poor PC whose asthma only gets worse by Diwali Crackers but not by her chain smoking nor by the fireworks at other times, would have been thoroughly disappointed by my once and forever soulmate‘s indifference). I was reminded of a song composed by Bharatratna Pandit Ravi Shankar for the movie Meera, made by Gulzar in the late 70s. The lyrics for all the songs are by Meera herself and barring a single alaap by Pandit Dinkar Kaikini , a complete dozen songs of the highest quality have been rendered by Vani Jairam. This song is based on Gaud Malhar, a raag for the rainy season. The song as well as the raag paint a wonderful picture of rains in front of you and make you want to rush out into the downpour and get soaked to the bone. https://youtu.be/TYd4COdHYdo

Vani Jairam was largely ignored by the movie moguls in Bollywood . She was purposely passed over and sidelined. But she was a far far better and genuinely accomplished vocalist (sadly, I have to say “was) than the biased Bollywoodias cared to admit and accept. When Ravi Shankar was asked to compose the musical score, he asked for the creative freedom and got Vani Jairam to sing the entire set. As a result the album has the distinctive quality with it.

How could I not think of a sublime rendition in a closely related raag, Ramdasi Malhar by Ustad Amir Khan , the virtuoso vocalist of the Indore Gharana who had just the right amount of gravitas naturally infused in his voice. My favourite singer (apart from the incomparable Pandit Jasraj ji) for calming my mind (or even shed a pail or two of warm saline) . Multiple clips of his singing the same bandish are to be found. The words are just right for the raag. https://youtu.be/IMsNAC7FaaE

The rains stopped in about half an hour, having made the mercury plummet and the ensuing chaotic traffic and giant puddles of water at the usual spots the residua of the dramatic downpour. Choco, poor kid was thankfully pacified to become his usual boisterous self. Hope the two melodies help recreate the feel of the fleeting flirtation. Have fun, folks. I will retire with Ustad ji’s sublime singing.

Have fun